चंचल मन को समझाऊँ कैसे, विजय पताका फहराऊं कैसे|
मन अन्धकार के मार्ग पर अग्रसर,
करता अज्ञानता से मुझको तर,
ज्ञान का दीप जलाऊँ कैसे, विजय पताका फहराऊं कैसे|
हो चला है बलशाली अब मन,
अंकुश रखना हुआ कठिन,
योग्य महावत लाऊँ कैसे, विजय पताका फहराऊं कैसे|
बुद्धि कह कह कर हारी,
पर मन ने कभी एक न मानी,
बहुत हुई मनमानी तेरी सब,
बुद्धि कहे बारी मेरी अब,
तुझे सत्मार्ग पर ले आऊँगा, विजय पताका फहराऊंगा|
मन की चंचलता को वश में करने की सीख देती बेहतरीन छोटी कविता.. बिना ज्यादा भरकम शब्दों का उपयोग किये
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ReplyDeleteचंचल मन को समझाऊँ कैसे, विजय पताका फहराऊं कैसे..
Wonderful creation !
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sundar rachna .badhai
ReplyDeletevery nice poem
ReplyDeleteBeautiful poem with a touch of agony...Amazing effort...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteतुझे सत्मार्ग पर ले आऊँगा,
ReplyDeleteचंचल मन को समझाऊँ कैसे, विजय पताका .....
ReplyDeleteवास्तव में शब्द चयन और सारगर्भिता पर आने पूरा ध्यान दिया है।
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है, आपका आगमन फूलों की बगिया में सुवासित अलग-अलग फूलों के समान ब्लॉग जगत को महकायेगा, इसी आशा के साथ......
रामदास सोनी
बेहद उम्दा रचना.
ReplyDeleteशुभकामनाएं.
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कुछ ग़मों की दीये
सच्ची और बहुत अच्छी सोच - शुभकामनाएं
ReplyDeleteइस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteनए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है , अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
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