Friday, November 26, 2010

असमंजस




चंचल मन को समझाऊँ कैसे, विजय पताका फहराऊं कैसे|

मन अन्धकार के मार्ग पर अग्रसर,
करता अज्ञानता से मुझको तर,
ज्ञान का दीप जलाऊँ कैसे, विजय पताका फहराऊं कैसे|

हो चला है बलशाली अब मन,
अंकुश रखना हुआ कठिन,
योग्य महावत लाऊँ कैसे, विजय पताका फहराऊं कैसे|

बुद्धि कह कह कर हारी,
पर मन ने कभी एक न मानी,
बहुत हुई मनमानी तेरी सब,
बुद्धि कहे बारी मेरी अब,
तुझे सत्मार्ग पर ले आऊँगा, विजय पताका फहराऊंगा|